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Bhagwan Hanuman story (kahani) in Hindi. 

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महावीर हनुमानजी के चिन्तन के बगैर मंगलवार का दिन अधूरा है, और भगवान् श्री रामजी के बगैर हनुमानजी अधूरे है, रामजी और हनुमानजी के चिन्तन के पहले यह जान लेना जरूरी है कि मनुष्य का जीवन क्या है? सज्जनों! मनुष्य का जीवन क्रम भी एक यज्ञ के समान है, और यह यज्ञ सत्य और समर्पण के बिना अधूरा होता है।
रामजी सत्य हैं और लक्ष्मणजी हैं समर्पण, जब तक रामरूपी सत्य और लक्ष्मण रूपी समर्पण हमारे जीवन में नहीं आयेगा, तब तक हमारा यह जीवन रूपी यज्ञ पूरा नहीं होगा, भक्ति रूपी सीता वहीं रह सकती है, जहां जीवन वाटिका हरी-भरी, पल्लवित, पुष्पित और प्रफुल्लित होती है, परमात्मा भी संयमित, समर्पित और सदाचारी व्यक्ति की ओर देखने के लिये लालायित रहते हैं।
दोस्तो, अगर भक्ति में छल, कपट अथवा पाखंड और प्रदर्शन होने लगेगा तो ऐसी साधना किसी काम नहीं आ सकती, जीवन में लोभ, लालच और अविद्या का नाश करना है तो केवल हनुमानजी के नाम में है, और जहाँ हनुमानजी है वहाँ श्रीरामजी अवश्य है, दुराशा, लोभ और द्वेष जैसी बीमारी प्रत्येक जीव में पायी जाती हैं, इनका नाश तो केवल ज्ञान चक्षु से ही संभव है।
प्रत्येक मनुष्य से अपने जीवन में भूल, अपराध और छोटे-मोटे पाप जाने-अनजाने में होते रहते हैं, इन अपराधों या पापों को छिपाना नहीं चाहिये, बल्कि इनका प्रायश्चित करते हुये यह प्रयास करते रहना चाहियें कि इनकी पुनरावृत्ति नहीं हो, क्योंकि छुपाने से पाप या अपराध और बढ़ते हैं, भाई-बहनों, मारने का काम तो कोई भी कर सकता है, लेकिन तारने का काम तो भगवान ही करते हैं।
सीता राम चरन रति मोरे।
अनुदिन बढहिं अनुग्रह तोरे।।
रति काम से नहीं रति राम से चाहिये, भक्त भजन में डूबे हैं, हम सब यजन में रहते हैं, दोस्तों! हम सब पाना चाहते हैं ये सब यजन ही हैं, और जो हर परिस्थिति में संतुष्ट है वो भजन है, याद रखिये, माँगने वाले को सदा शिकायत रहेगी कि मुझे कम मिला है, औरों को तूने इतना दे दिया, मुझे क्या दिया? माँगने वाला सदा प्रभु को दोष देता है।
भक्त हमेशा अनुग्रह में जीता है, अनुग्रह का अर्थ है- प्रभु तूने इतना दिया है कि मैं तो इसे सम्भालने की क्षमता भी नहीं रखता, मेरी तो इतनी पात्रता भी नहीं है, ये भाव जहाँ से उठे उसे भजन कहते हैं, जो मिला है वो तो बहुत कम है मैरी पात्रता इससे बहुत ज्यादा है ऐसे भाव जहाँ से उठे उसको यजन कहते हैं, जो बुद्धि से पैदा हो वो यजन है।
जैसे मछली को पकड़ने के लिये जाल फेंका जाता है, लेकिन भक्त का जाल उल्टा होता है, भक्त पुकारता है भगवन! तू कैसे भी मुझे अपने जाल में फँसा ले, अगर तू नहीं फँसायेगा तो मुझे ये माया का जाल फँसा लेगा, इसलिये जो फँसाती है वो बुद्धि है और जो फँसता है वो ह्रदय है, इसलिये भक्त भगवान् से हमेशा ये ही कहते हैं, अगर आप नहीं फँसाओगे तो माया मुझे फँसा लेगी, मुझे माया का दास नहीं बनना, मुझे तो परमात्मा का भक्त दास बनना है।
भाई-बहनों, प्रेम और यजन में यही तो फर्क है? प्रेम स्वयं करना पड़ता है जबकि अनुष्ठान यज्ञादि हमेशा किसी दूसरे से कराया जाता है, यजन दूसरे से और भजन स्वयं किया जाता है, प्रेम किसी दूसरे से कराओगे क्या? हम सिनेमाघर में दूसरे को प्रेम करते नाचते गाते देखते हैं, हम नाचें, हम गायें, हम प्रेम में डूबे, हम प्रेम में सराबोर हों ये भक्ति हैं, प्रेम ह्रदय से छलकता हैं।
अपने और परमात्मा के बीच में किसी को रखने की क्या आवश्यकता है? हमको नहीं आता विधि विधान मान लिया, हमें शास्त्र के नियम व्यवस्थायें नहीं आती मान लिया, आप प्रश्न करेंगे कि फिर करें क्या? अरे करना क्या है, परमात्मा के चरणों में बैठकर थोड़ी देर रो लेते, अपनी टूटी-फूटी भाषा में कुछ बात कर लेते, अपनी भाव भरी प्रार्थना खुद रच लेते।
माँ अपनेबच्चे को गोद में खिलाती है वो कौन सा प्रशिक्षण लेकर आयी है, कि बच्चे को कैसे खिलाया जाता है? वो पागलों की तरह उससे घन्टों बतियाती रहती है, बालक न जानता है न सुनना जानता है, छाती से लगाये घंटो बातें करती है, ये ह्रदय की भाषा है, ये ह्रदय से जाकर टकराती है इसलिये हमें शास्त्र, मन्त्र, विधि-विधान नहीं आते तो ना आयें, हम ठाकुरजी के पास बैठकर उन्हें बता तो सकते हैं कि हमें कुछ आता नहीं।
केहि विधि अस्तुति करहुँ तुम्हारी, अधम जाति मैं जडमति भारी।
अधम ते अधम अधम अति नारी, तिन्ह महँ मैं मतिमंद अधारी।।
दण्डकारण्य में शबरी अकेली थी क्या? कितने ऋषि-मुनि द्वार खड़े स्वस्तिक-वाचन का पाठ कर रहे थे, पुष्प हार लिये खड़े थे, भगवान ने किसी की ओर देखा तक नहीं, सीधे शबरी के आश्रम पग धरा, प्रभु विधि की ओर नहीं निधि की ओर आकर्षित होते है, शबरी को तो कोई विधि आती ही नहीं थी, जैसे हमने सुना है कि बालक ने परमात्मा को क ख ग ही सुना दिया, और कह दिया भगवन! मंत्र जैसा चाहो अपनी पसन्द का बना लेना।
आप कृपया अपनी वर्णमाला तो सुनाइये परमात्मा को, और इसकी भी क्या आवश्यकता है? क्या भगवान् हमारे भाव को समझता नहीं है, "बैर भाव मोहि सुमिरहिं निसिचर" जब बैर भाव ऐसा हो सकता है तो प्रेम भाव कैसा होता होगा, आप कल्पना किजिये, हम मंदिर जाते हैं, क्या भाव है? कुछ माँगने जा रहे हैं तो यजन है, चढाने जा रहे है तो भजन हैं, लेकिन चार सेब चढाकर चालीस गुना प्रभु से माँगने जा रहे हैं।
ह्रदय में भीतर सूची भरी हुई है कि ये माँगना है वो माँगना है, जहाँ से हम लेने जाते है वो दुकान है और जहाँ हम देने जाते है वो मंदिर हैं, इसलिये भगवत प्रेम के बिना जितने भी अनुष्ठान हैं वो सब यजन हैं, भाई-बहनों आज इतना ही, कल फिर भक्ति धारा के महासागर में और भी गोते लगाने की कोशिश करेंगे।

मंगलवार को भूल कर भी न करें ये काम नहीं तो हो जाएंगे हनुमान जी नाराज !

God Hanuman story in Hindi



 नाशे रोग हरे सब पीरा जो सुमीरे हनुमत बलबीरा ... हर दुख , हर कष्ट को महाबली हनुमान हर लेते हैं . मंगलवार को बजरंगबली का दिन माना जाता है . इस दिन श्रद्धालु पूरे विधि विधान से हनुमान जी की पूजा करते हैं . साथ ही व्रत भी रखते हैं . ऐसी मान्यता है कि कलयुग में हनुमान जी ही पृथ्वी पर विराजमान हैं . भक्त हनुमान जी की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ जरूर करते हैं . साथ ही आज के दिन बजरंगबली को चोला अवश्य चढ़ता है . हनुमान जी की पूजा करने से जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलती है . पूजा विधि हनुमान जी की पूजा मंगलवार और शनिवार के दिन करना विशेष फलदायी माना गया है . हनुमान जी की पूजा विधि पूर्वक करनी चाहिए . ऐसा करने से पूजा का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है . मंगलवार के दिन व्रत रखने से भी हनुमान जी का आर्शीवाद प्राप्त होता है . हनुमान जी की पूजा सुबह स्नान करने के बाद शुरू करनी चाहिए . हनुमान जी की पूजा में स्वच्छता और नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए . इसके साथ ही निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिए
-हनुमान चालीसा का पाठ हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने करना चाहिए . -इसके साथ ही एक पात्र में गंगाजल की कुछ बूंदे जल में मिलाकर रखनी चाहिए . -पूजा के बाद इस जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए . -हनुमान जी की पूजा आरंभ करने से पहले हनुमान जी के सम्मुख चमेली के तेल का दीपक जलाएं . -हनुमान जी मंगलवार को चोला चढ़ाने से अधिक प्रसन्न होते हैं . -चोला चढ़ाने के साथ हनुमान जी को लडू , गुड़ और चने का भोग लगाएं . -पूजा के समाप्त होने पर इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और वितरित करें . इस मंत्र का जाप करें ॐ श्री हनुमंते नमः मंगलवार को न करें ये काम हनुमान जी की पूजा में नियमों को विशेष महत्व है . इस दिन गंदगी से दूर रहना चाहिए . स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए . मन में गलत विचारों को न आने दें . क्रोध और लोभ से दूर रहना चाहिए . इस दिन किसी का अपमान और अनादर नहीं करना चाहिए .

पूजापाठ से जुड़ी हुईं महत्वपूर्ण बातें * 

★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए । 
★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए । 
★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें । 
★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए । इसे उपांशु जप कहते हैं । इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं ।
 ★ जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए ।
 ★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए ।
 ★ संक्रान्ति , द्वादशी , अमावस्या , पूर्णिमा , रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं । 
★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए ।
 ★ यज्ञ , श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए , सफेद तिल का नहीं । 
★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए । पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए । परिक्रमा करना श्रेष्ठ है ,
★ कूमड़ा - मतीरा - नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें । यह उत्तम नही माना गया हैं । 
★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए । 
★ देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें ।
 ★ किसी को भी कोई वस्तु या दान - दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए । 
★ एकादशी , अमावस्या , कृष्ण चतुर्दशी , पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर - कर्म ( दाढ़ी ) नहीं बनाना चाहिए ।
 ★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य , कर्म किया जाता है , वह निष्फल हो जाता हैं । 
★ शंकर जी को बिल्वपत्र , विष्णु जी को तुलसी , गणेश जी को दूर्वा , लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं । 
★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुमकुम नहीं चढ़ती । 
★ शिवजी को कुंद , विष्णु जी को धतूरा , देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे । 
★ अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावे ।
 ★ नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं ।
  विष्णु भगवान को चावल गणेश जी को तुलसी , दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें ।
 ★ पत्र - पुष्प - फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें , जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें । 
★ किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें । 
★ पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें । 
★ सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे । 
★ गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं । ★ पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है । ★ दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं ।
 ★ सभी धार्मिक कार्यों में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए ।
 ★ पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें । 
★ पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा , धूप तथा दाहिनी ओर शंख , जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें ।
 ★ घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें । 
★ गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़कर सब पत्र प्रिय हैं । भैरव की पूजा में तुलसी स्वीकार्य नहीं है ।
   कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोड़कर निषेध हैं। 
 ★ बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नहीं करते । 
★ रविवार को दूर्वा नहीं तोड़नी चाहिए । 
★ केतकी पुष्प शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए । 
★ केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करें । 
★ देवताओं के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नहीं चाहिए । 
★ शालिग्राम का आवाह्न तथा विसर्जन नहीं होता । ★ जो मूर्ति स्थापित हो उसमें आवाहन और विसर्जन नहीं होता । 
★ तुलसीपत्र को मध्यान्ह के बाद ग्रहण न करें । 
★ पूजा करते समय यदि गुरुदेव , ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करें । 
★ मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है । 
★ कमल को पांच रात , बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है ।
         पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल दुग्ध से स्नान कराने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है । 
★ शालिग्राम पर अक्षत नहीं चढ़ता । लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है । 
★ हाथ में धारण किये पुष्प , तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल अपवित्र हो जाते हैं । 
★ पिघला हुआ घी और पतला चन्दन नहीं चढ़ाना चाहिए ।
 ★ प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ाएं । 
★ आसन , शयन , दान , भोजन , वस्त्र संग्रह , विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गई है । 
★ जो मलिन वस्त्र पहनकर , मूषक आदि के काटे वस्त्र , केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो , जप आदि करता है उसे देवता नाश कर देते हैं । ★ मिट्टी , गोबर को निशा में और प्रदोषकाल में गोमूत्र को ग्रहण न करें । 
★ मूर्ति स्नान में मूर्ति को अंगूठे से न रगड़ें ।
 ★ पीपल को नित्य नमस्कार पूर्वाह्न के पश्चात् दोपहर में ही करना चाहिए । इसके बाद न करें । 
★ जहां अपूज्यों की पूजा होती है और विद्वानों का अनादर होता है , उस स्थान पर दुर्भिक्ष , मरण और भय उत्पन्न होता है ।
    पौष मास की शुक्ल दशमी तिथि , चैत्र की शुक्ल पंचमी और श्रावण की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन करें । 
★ कृष्णपक्ष में , रिक्तिका तिथि में , श्रवणादी नक्षत्र में लक्ष्मी की पूजा न करें । 
★ अपराह्नकाल में , रात्रि में , कृष्ण पक्ष में , द्वादशी तिथि में और अष्टमी को लक्ष्मी का पूजन प्रारम्भ न करें । 
★ मंडप के नव भाग होते हैं , वे सब बराबर - बराबर के होते हैं अर्थात् मंडप सब तरफ से चतुरासन होता है , अर्थात् टेढ़ा नहीं होता । जिस कुंड की श्रृंगार द्वारा रचना नहीं होती वह यजमान का नाश करता है । 

★ पूजा - पाठ करते समय हो जाए कुछ गलती तो अंत में जरूर बोलें ये एक मंत्र 


आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
 पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥ 
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन । 
यत्पूजितं मया देव ! परिपूर्ण तदस्तु मे ॥

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