पवित्र शंख का महत्व व लाभ हिन्दू धर्म में !

 पवित्रशंखका महत्व व लाभ हिन्दू धर्म में !

Sankh Ke mahatwa

हिन्दू धर्म में प्रत्येक मांगलिक कार्य के अवसर पर शंख बजाना अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। साथ ही इसके अनेक वैज्ञानिक लाभ भी हैं, जो शंख बजाने वाले को अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। अगर दिन की शुरुआत शंख की आवाज़ से किया जाए तो दिन बहुत अच्छा जाता है।

शंख का महत्व व लाभ,.....


1) यदि गर्भावस्था के समय माँ को शंख में जल भरकर पिलाया जाए, तो उसकी संतान को वाणी संबंधी कोई भी समस्या नहीं होती है। चिकित्सकों के अनुसार गर्भवती महिलाओं को शंख नहीं बजाना चाहिए, क्योंकि इससे उनके गर्भ पर दबाव पड़ता है।

2) तोतला या हकलाकर बोलने वाले बच्चे यदि शंख में जल भरकर पिएँ और शंख बजाएं तो उनकी वाणी संबंधी समस्याएँ चमत्कारिक रूप से दूर हो जाती हैं।

3) शंख बजाने से फेफड़ों का व्यायाम होता है। पुराणों के अनुसार श्वास का रोगी नियमित शंख बजाकर इस रोग से मुक्ति पा सकता है|

4) बर्लिन विश्वविद्यालय में किए गए एक अनुसंधान के अनुसार शंख की ध्वनि जीवाणुओं-कीटाणुओं को नष्ट करने का सर्वोत्तम साधन है। शंखघोष गूँजने वाले स्थान पर दुष्टात्माएँ प्रवेश नहीं कर सकतीं। शंख में रखे जल में भी कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत शक्ति होती है।
शंखनाद से व्यक्ति का शरीर एवं उसके आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और मन में सतोगुण का संचार होता है, जिससे सकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं। इससे शंख बजाने वाले के मस्तिष्क का प्रसुप्त तंत्र जागृत होता है, जो उसके व्यक्तित्व विकास में अत्यंत सहायक होता है।

5) शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ विद्यमान होते हैं। अतः ये स्वास्थ्यप्रद गुण उसमें रखे जल में भी आ जाते हैं। अतः शंख में रखा पानी पीना हड्डियों और दांतों की मजबूती के लिए बहुत लाभदायक है।

6) शिव को छोड़कर सभी देवताओं पर शंख से जल अर्पित किया जा सकता है। शिव ने शंखचूड़ नामक दैत्य का वध किया था अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है।

7) शंख से वास्तुदोष ही दूर नहीं होता इससे आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है। 

8) शंख दो प्रकार के होते हैं:- दक्षिणावर्ती एवं वामावर्ती। लेकिन एक तीसरे प्रकार का भी शंख पाया जाता है जिसे मध्यावर्ती या गणेश शंख कहा गया है।

* दक्षिणावर्ती शंख पुण्य के ही योग से प्राप्त होता है। यह शंख जिस घर में रहता है, वहां लक्ष्मी की वृद्धि होती है। इसका प्रयोग अर्घ्य आदि देने के लिए विशेषत: होता है।

* वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है। इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं।

9) महाभारत में भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी।

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।।-महाभारत

10) अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसों का नाश होता है- शंखेन हत्वा रक्षांसि। भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपिक्षित है।

11) महाभारत काल में अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था। श्रीकृष्ण का ‘पांचजन्य’ नामक शंख तो अद्भुत और अनूठा था, जो महाभारत में विजय का प्रतीक बना।

12) शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख की ध्वनि को ॐ की ध्वनि के समकक्ष माना गया है। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है

13) शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है।

14) शंख को कारखाने में स्था‍पित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है। यदि व्यापार में घाटा हो रहा है, दुकान से आय नहीं हो रही हो तो एक शंख दुकान के गल्ले में रखा जाए तो इससे व्यापार में वृद्धि होती है।

15) शंख को मंत्र सिद्ध व प्राण-प्रतिष्ठा पूजा कर स्थापित किया जाए तो उसमें जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आर्थिक उन्नति होती है।

16) शंख को घर में स्थापित कर रोज 'ॐ श्री महालक्ष्मै नम:' 11 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक प्रयोग करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है। इसी तरह प्रत्येक शंख से अलग अलग लाभ प्रा‍प्त किए जा सकते हैं।

17) शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है।

18) शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।

19) शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है। शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है। गोरक्ष संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है।

20) पेट में दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है। यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है।

21) शंख को किसी भी दिन लाकर पूजा स्थान पर पवित्र करके रख लें और प्रतिदिन शुभ मुहूर्त में इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर में वास्तु दोष का प्रभाव कम हो जाता है। शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक उर्जा का संचार होता है l

"सकल   सुमंगल   दायक   रघुनायक   गुनगान ।
 सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ।।"

                  अर्थात : श्रीरघुनाथजी का गुणगान समस्त मंगलों को देने वाला है । जो इसे आदरपूर्वक सुनेंगे वे बिना किसी जहाज 'अन्य साधन' के ही संसार सागर को  तर जायेंगे ।

भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।

स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **


हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
विशेष,,,, आपके अज्ञान को दूर कर अग्निहोत्र के इस ग्यान के प्रकाश को दे पाऊ /फेला पाऊ, यही मेरा स्वप्न है. यह आचरण मेरी निष्काम /निःस्वार्थ सोच का परिणाम है l प्रभु मेरी सहायता करे / मेरा मार्ग प्रशस्त करे.

जिस प्रकार एक छोटे से बीज़ में विशाल वट वृक्ष समाया होता है उसी प्रकार आप में अनंत क्षमताएं समायी हुईं हैं l आवश्यकता है उस ज्ञान की / अपना बौधिक एवं शैक्षणिक स्तर को उन्नत करने की जिसे प्राप्त कर आप महानता प्राप्त कर सके !

आओ हम सब वृक्ष लगाऐं धरती का श्रृंगार करें।
मातृभूमि को प्रतिपल महकाऐं,जीवन से हम प्रेम करें।।

प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है !एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान है lपीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सेंकड़ों यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है l

छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-
'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। '

इस्लामी शिक्षा में पेड़ लगाने और वातावरण को हराभरा रखने पर जोर दिया गया है। पेड़ लगाने को सदका अथवा पुण्य का काम कहा गया है। पेड़ को पानी देना किसी मोमिन को पानी पिलाने के समान बताया गया है।

देवलोक अग्निहोत्र आपको सद्गुरु की तरह सन्मार्ग दिखाने का हर सम्भव प्रयास करेगा !

कोई न सतगुरु सों परोपकारी जग माहिं।
मैलो मन-बुद्धि संवार, यम ते लेत छुड़ाहिं।।

जय गौ गंगा गायत्री त्रिमाता

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