लोक आस्था और सूर्योपासना का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाय के साथ आठ नवंबर से आरंभ होगा। नौ नवंबर को खरना, 10 नवंबर को भगवान भास्कर को सायंकालीन और 11 नवंबर को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही व्रती चार दिवसीय अनुष्ठान का समापन करेंगी। चार दिवसीय अनुष्ठान के अवसर पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बना है। ज्योतिष आचार्य पीके युग ने पंचांगों के हवाले से बताया कि नहाय-खाय से लेकर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य तक कई योग बने हैं जो शुभ फल प्रदान करने वाला है।
छठ पूजा २०२१ : शुभ मुहूरत, पौराणिक कथा, महत्व और पूजा विधि!
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छठ पर्व में किसकी होती है पूजा?
छठ महापर्व में मुख्यतः सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता हैं, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें माँ कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा जाता है।
छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
छठ पर्व का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक कथा के अनुसार प्रथम मानव स्वयंभू मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया। इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे। तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। जब राजा ने उनसे प्रार्थना की, तो उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा - मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं।” इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया।
छठ पूजा का धार्मिक महत्व
सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है। वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है। छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम का भाव।
छठ पर्व का खगोलीय महत्व
वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है। इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है। छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से सूर्य के इन नकारात्मक प्रभावों का मनुष्य पर कम असर पड़ता है। 36 घंटे का व्रत और सात्विक भोजन, व्रती को सूर्य से उचित ऊर्जा लेने में मदद करता है।
पूजन सामग्री
व्रती के लिए नए कपड़े
बांस या पीतल का सूप
प्रसाद रखने के लिए बांस की टोकरी
नारियल और चावल
गन्ने
मिट्टी के दीपक
धूपबत्ती, कुमकुम, बत्ती, सिंदूर, चौकी
केला, सेब, सिंघाड़ा, हल्दी, मूली, शकरकंदी और सुथनी
पान और सुपारी
शहद, मिठाई, गुड़, गेहूं और चावल का आटा
गंगा जल और दूध
छठ पूजा में किस दिन क्या होता है -
छठ पूजा की शुरुआत चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय से हो जाती है। इस बार नहाय खाय 08 नवंबर (सोमवार) को है। नहाय-खाय के दिन लोग घर की साफ-सफाई करते हैं। इस दिन लोग नए वस्त्र धारण कर सात्विक आहार लेते हैं। इसके बाद लोग छठ मैया का व्रत रखते हैं और सुबह सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही पारण करते हैं। व्रत से पूर्व नहाने के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करने को ही नहाय-खाय कहा जाता है।
खरना
इसके बाद पंचमी तिथि को खरना होता है जिसमें व्रती को दिन में व्रत करके शाम को सात्विक आहार जैसे गुड़ की खीर, कद्दू की खीर आदि ग्रहण करना होता है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद बनाने की परंपरा है।
षष्ठी
छठ पूजा के दिन षष्ठी को व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है। यह व्रत खरना के दिन शाम से शुरू होता है। छठ यानी षष्ठी तिथि के दिन शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्यदिया जाता है। इस दिन छठ पर्व का प्रसाद बनाया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देने और पूजा के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाती हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा की जाती है। इसके बाद सप्तमी को उगते हुए सूर्य को अर्घ्यदिया जाता है। पूजा के बाद प्रसाद बाँट कर करीब 36 घंटे चलने वाला निर्जला व्रत समाप्त होता है।
बुधादित्य व वरिष्ठ योग में आठ नवंबर को नहाय-खाय
ज्योतिष आचार्य पीके युग ने पंचांगों के हवाले से बताया कि आठ नवंबर को नहाय-खाय के दिन सूर्य से तीसरे भाव में चंद्रमा होने से वरिष्ठ योग एवं सूर्य व बुध साथ होने से बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में व्रती नहाय-खाय पर गंगा स्नान करने के बाद अरवा चावल, चने के दाल व कद्दू की सब्जी ग्रहण करेंगे।
रसकेसरी योग में नौ नवंबर बनेगा खरना का प्रसाद
नौ नवंबर को छठ व्रती रसकेसरी व बुधादित्य योग में खरना का प्रसाद बना कर चंद्र को अर्घ्य देने के बाद शाम में ग्रहण करेंगी। शुक्र और चंद्रमा के योग से रसकेसरी व सूर्य व बुध के योग से बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है।
गजकेसरी योग में 10 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्य
10 नवंबर को गुरु चंद्रमा के साथ रहने से गजकेसरी योग में व्रती सायंकालीन अर्घ्य देंगी। वहीं चंद्रमा के साथ द्वादश भाव में शुक्र के रहने से अनफा योग का निर्माण होगा।
पराक्रम योग में 11 नवंबर को उदयीमान सूर्य का अर्घ्य
छठ व्रती 11 नवंबर को पराक्रम योग में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगी। सूर्य और मंगल की युति से पराक्रम योग का निर्माण हो रहा है।
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