5 Best Hindi inspirational Kahaniya in Hindi.

 Best inspirational stories in Hindi for successful life. 

Hindi inspirational Kahaniya

वसीएत


एक घर मे तीन भाई और एक बहन थी...बड़ा और छोटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके मा बाप उन चारो से बेहद प्यार करते थे मगर मझले बेटे से थोड़ा परेशान से थे। 
बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डाक्टर बन गया। 
छोटा भी पढ लिखकर इंजीनियर बन गया। मगर मझला बिलकुल अवारा और गंवार बनके ही रह गया। सबकी शादी हो गई । बहन और मझले को छोड़ दोनों भाईयो ने Love मैरीज की थी।
बहन की शादी भी अच्छे घराने मे हुई थी।
आखीर भाई सब डाक्टर इंजीनियर जो थे।
अब मझले को कोई लड़की नहीं मिल रही थी। बाप भी परेशान मां भी दुखी थी, 
बहन जब भी मायके आती सबसे पहले छोटे भाई और बड़े भैया से मिलती। मगर मझले से कम ही मिलती थी।
अगर अचानक टकरा भी जाती तो बस प्रणाम पर ही मुलाकात खत्म हो जाती थी
क्योंकि वह न तो कुछ दे सकता था और न ही वह जल्दी घर पे मिलता था।
वैसे वह दिहाडी मजदूरी करता था। पढ़ नहीं सका तो...नौकरी कौन देता। मझले की शादी कीये बिना बाप गुजर गये ।
माँ ने सोचा कहीं अब बँटवारे की बात न निकले इसलिए अपने ही गाँव से एक सीधी साधी लड़की से मझले की शादी करवा दी।
शादी होते ही न जाने क्या हुआ की मझला बड़े लगन से काम करने लगा ।
दोस्तों ने कहा... ए चन्दू आज अड्डे पे आना।
चंदू - आज नहीं फिर कभी आऊंगा
दोस्त - अरे तू शादी के बाद तो जैसे बिबी का गुलाम ही हो गया? 
चंदू - अरे ऐसी बात नहीं है यार । कल मैं अकेला एक पेट था तो अपने रोटी के हिस्से कमा लेता था। और कमा भी ना सका तो मां छुपा कर अपना हिस्सा खिला दिया करती थी मगर अब दो पेट हो चुका हूं ,कल और होगा।
घरवाले नालायक  कहते हैं मेरे लिए चलता है।
काम चोर अनपढ़ गंवार कहते हैं चलता है 
मगर मेरी पत्नी मुझे कभी नालायक कहे तो मेरी मर्दानगी पर एक भद्दी गाली होगी। 
क्योंकि एक पत्नी के लिए उसका पति उसका घमंड इज्जत और उम्मीद होता है। उसके घरवालो ने भी तो मुझपर भरोसा करके ही तो अपनी बेटी दी होगी...फिर उनका भरोसा कैसे तोड़ सकता हूँ । कालेज मे नौकरी की डिग्री मिलती है 
और ऐसे संस्कार मां बाप से मिलते हैं । 
मैं मुंह से नहीं कहता लेकिन मेरी मां की नजरों में मैंने हमेशा मेरे लिए फ़िक्र देखी है,
मैं शादी के बाद सुधर जाऊंगा मेरी मां ने इसलिए‌ मेरी शादी नहीं की, मगर इसलिए की थी की ताकी जीते जी वो मेरे बच्चों को अपनी गोदी में खिला सके।
अगर मां की जिद ना होती ना तो मैं कभी शादी नहीं करता, क्योंकि सच में मै नालायक ही था, सच में मैं गंवार ही था,  मैं खुद को सम्भाल नहीं सकता तो कीसी की बेटी को कैसे सम्भाल सकता था,
मां ने जबरजस्ती बंधन में बांध तो दिया मुझे, लेकिन कल तक मां की आंखों में मेरे लिए शिकायत दिखती थी,
आज मैंने अपनी मां की आंखों में फ़िक्र देखी है
कहते हैं मां बाप उम्र से बूढ़े नहीं वल्कि बच्चों की फ़िक्र से जल्दी बूढ़े होते हैं
मेरे बाबा मेरी फ़िक्र करते करते सो गए मगर अब मां की आंखों से फ़िक्र हटाकर खुशी भरना चाहता हूं ताकि मेरी मां उम्र से बूढ़ी लगे इस नालयाक बेटे की फ़िक्र से नहीं।
इधर घर पे बड़ा और छोटा भाई और उनकी पत्नीया मिलकर आपस मे फैसला करते हैं की...जायदाद का बंटवारा हो जाये क्योंकि हम दोनों लाखों कमाते है मगर मझला ना के बराबर कमाता है। ऐसा नहीं होगा या तो वो हमारी बराबरी करे या तो हम अलग हो जाते हैं।
मां के लाख मना करने पर भी...बंटवारा की तारीख तय होती है। बहन भी आ जाती है मगर 
चंदू है की काम पे निकलने को बाहर आता है। 
उसके दोनों भाई उसको पकड़कर भीतर लाकर बोलते हैं की आज तो रूक जा? 
बंटवारा कर ही लेते हैं । 
चंदू- अरे करो ना बंटवारा रोका किसने है, तुम्हारे बंटवारे से मेरी मजदूरी से क्या मतलब?
वकील कहता है ऐसा नहीं होता साईन करना पड़ता है।
चंदू - तुम लोग बंटवारा करो मेरे हिस्से मे जो देना है दे देना। 
मैं शाम को आकर अपना बड़ा सा अगूंठा चिपका दूंगा पेपर पर।
बहन- अरे बेवकूफ ...तू गंवार का गंवार ही रहेगा। तेरी किस्मत अच्छी है की तूझे इतने अच्छे भाई और भैया मिलें हैं
मां- अरे चंदू आज रूक जा एक दिन ना जाने से कोई भूखा नहीं सोएगा, रह जा, मां की बात सुनकर चंदू रूक जाता है।
बंटवारे में कुल दस विघा जमीन मे दोनों भाई 5- 5 रख लेते हैं ।
और चंदू को पुस्तैनी घर छोड़ देते है ।
लेकिन तभी चंदू जोर से चिल्लाता है।
अरे???? हिस्सा तो सिर्फ तीन हुआ???
फिर हमारी छुटकी का हिस्सा कौन सा है?
दोनों भाई हंसकर बोलते हैं 
अरे मूरख...बंटवारा भाईयो मे होता है और बहनों के हिस्से मे सिर्फ उसका मायका ही है।
चंदू - ओह... शायद पढ़ा लिखा न होना भी मूर्खता ही है।
ठीक है आप दोनों ऐसा करो।
मेरे हिस्से की वसीएत मेरी बहन छुटकी के नाम कर दो।
दोनों भाई चकीत होकर बोलते हैं ।
और तू?
चंदू मां की और देखके मुस्कुराके बोलता है
मेरे हिस्से में माँ है ना, जो पलकों में हमेशा मेरे लिए फ़िक्र लिए फिरती है !
फिर अपनी बिबी की ओर देखकर नमः पलकों से मुस्कुरा कर पूछता है....क्यों चंदूनी जी...क्या मैंने गलत कहा? 
चंदूनी अपनी सास से लिपटकर कहती है। इससे बड़ी वसीएत क्या होगी मेरे लिए की मुझे मां जैसी सास मिली और बाप जैसा ख्याल रखना वाला पति मिला, मेरी तो वसीयत ही आप दोनों हैं।
बस येही शब्द थे जो बँटवारे को सन्नाटा मे बदल दिया ।
बहन दौड़कर अपने गंवार भैया से गले लगकर रोते हुए कहती है की..मांफ कर दो भैया मुझे क्योंकि मैं समझ न सकी आपको।
चंदू - इस घर मे तेरा भी उतना ही अधिकार है जीतना हम सभी का।
बहुओं को जलाने की हिम्मत कीसी मे नहीं मगर फिर भी जलाई जाती है क्योंकि शादी के बाद हर भाई हर बाप उसे पराया समझने लगते हैं । मगर मेरे लिए तुम सब बहुत अजीज हो चाहे पास रहो या दुर। गर हर भाई और बाप ए कहे कि हमारी बेटी भले आपके घर की बहू है मगर पहले हमारी बहन हमारी बेटी ही रहेगी, तो कभी किसी कि हिम्मत नहीं होगी बेटी बहू को जलाने की मारने की,
माँ का चुनाव इसलिए कीया ताकी तुम सब हमेशा मुझे याद आओ। क्योंकि ये वही कोख है जंहा हम चारों ने साथ साथ 9 - 9 महीने गुजारे। 
मां के साथ तुम्हारी यादों को भी मैं रख रहा हूँ। 
दोनों भाई दौड़कर मझले से गले मिलकर रोते रोते कहते हैं 
आज तो तू सचमुच का बाबा लग रहा है। सबकी पलको पे पानी ही पानी होता है.
सब एक साथ फिर से रहने लगते है। डिग्रीयां समझ देती है ज्ञान देती है, मगर संस्कार रिश्तों को हमेंशा सम्मानित कराते है।

हिरण और शेर की कहानी! 

जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।

वहां पहुँचते  ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।

उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।

मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ? 

क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?

हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।

*हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।अन्तत: यश, अपयश ,हार ,जीत, जीवन,मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है।हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।*

कुछ लोग हमारी *सराहना* करेंगे,
कुछ लोग हमारी *आलोचना* करेंगे।

दोनों ही मामलों में हम *फायदे* में हैं,

एक हमें *प्रेरित* करेगा और
दूसरा हमारे भीतर *सुधार* लाएगा।।

भगवान और बच्ची की कहानी! 

एक  बार  स्वर्ग  से  घोषणा हुई  कि  भगवान  सेब  बॉटने आ  रहे  है  सभी  लोग भगवान  के  प्रसाद  के  लिए तैयार  हो  कर  लाइन लगा कर  खड़े  हो  गए। 

एक  छोटी  बच्ची  बहुत उत्सुक  थी  क्योंकि  वह पहली  बार  भगवान  को देखने  जा  रही  थी।

एक  बड़े  और  सुंदर  सेब  के साथ  साथ  भगवान  के दर्शन  की  कल्पना  से  ही खुश  थी।

अंत  में  प्रतीक्षा  समाप्त  हुई। बहुत  लंबी  कतार  में  जब उसका  नम्बर  आया  तो भगवान  ने  उसे  एक  बड़ा और  लाल  सेब  दिया। 

लेकिन  जैसे  ही  उसने  सेब पकड़ कर  लाइन  से  बाहर निकली  उसका  सेब  हाथ  से छूट कर  कीचड़  में  गिर गया।  बच्ची  उदास  हो  गई।

अब  उसे  दुबारा  से  लाइन  में  लगना  पड़ेगा। दूसरी लाइन  पहली  से  भी  लंबी थी। लेकिन  कोई  और  रास्ता  नहीं  था।  

सब  लोग  ईमानदारी  से अपनी  बारी  बारी  से  सेब लेकर  जा  रहे  थे।

अन्ततः  वह  बच्ची  फिर  से लाइन  में  लगी  और  अपनी बारी  की  प्रतीक्षा  करने लगी।

आधी  क़तार  को  सेब  मिलने  के  बाद  सेब  ख़त्म होने  लगे। अब  तो  बच्ची बहुत  उदास  हो  गई। 

उसने सोचा  कि  उसकी  बारी  आने  तक  तो  सब  सेब  खत्म  हो  जाएंगे।  लेकिन  वह  ये  नहीं  जानती थी  कि  भगवान  के  भंडार कभी  ख़ाली  नही  होते।

जब  तक  उसकी  बारी  आई  तो  और  भी  नए  सेब  आ गए ।

भगवान  तो  अन्तर्यामी  होते हैं। बच्ची  के  मन  की  बात जान  गए।उन्होंने  इस  बार बच्ची  को  सेब  देकर  कहा कि  पिछली  बार  वाला  सेब एक  तरफ  से  सड़  चुका  था। 

तुम्हारे  लिए  सही  नहीं  था इसलिए  मैने  ही  उसे  तुम्हारे हाथों  गिरवा  दिया  था। दूसरी  तरफ  लंबी  कतार  में तुम्हें  इसलिए  लगाया क्योंकि  नए  सेब  अभी पेडों पर  थे।  उनके  आने  में  समय  बाकी  था। इसलिए तुम्हें  अधिक  प्रतीक्षा  करनी पड़ी।

ये  सेब  अधिक  लाल, सुंदर और  तुम्हारे  लिए  उपयुक्त है। 

भगवान  की  बात  सुनकर बच्ची  संतुष्ट  हो  कर  गई ।

इसी  प्रकार  यदि  आपके किसी  काम  में  विलंब  हो रहा  है  तो  उसे  भगवान  की इच्छा  मान कर  स्वीकार करें। जिस  प्रकार  हम  अपने बच्चों  को  उत्तम  से  उत्तम देने  का  प्रयास  करते  हैं।

उसी  प्रकार  भगवान भी अपने  बच्चों  को  वही  देंगे जो  उनके  लिए  उत्तम  होगा। ईमानदारी  से  अपनी  बारी की  प्रतीक्षा  करे।और  उस परम  पिता  की  कृपा  के  लिए  हर  प्रतीक्षा करो....

भगवान की कृपा की कहानी! 

अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाडू लगा रही थी तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली :- पुत्री भविष्य में कभी तुम पर दु:ख, पीड़ा, या घोर विपत्ति भी आये तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना सीधे भगवान की शरण में जाना
उत्तरा हैरान होते हूए मात द्रौपदी को निहारते हूए बोली :- आप ऐसा क्यों कह रही है माता ? 
द्रौपदी बोली :- क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचो पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गये। फिर कौरव पुत्रो ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया 
मैने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झूकाये बैठे थे। 
पितामह भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने मेरी तरफ नहीं देखा वे सभी आंखे झूकाये आंसू बहाते रहे। 
फिर मैंने भगवान श्री द्वारिकाधीश को पुकारा :- हे प्रभु अब आपके सिवाय मेरा कोई भी नहीं है। तुरंत आये और मेरी रक्षा की इसलिए बेटी जीवन में जब भी संकट आये आप भी उन्हें ही पुकारना

जब द्रौपदी पर विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्री कृष्ण विचलित हो रहे थे। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पडा था

रूकमणी उनसे दुखी होने का कारण पूछती है तो वह बताते हैं कि मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है
रूकमणी बोलती है :- आप जाये और उसकी मदद करे

श्री कृष्ण बोले :- जब तक द्रौपदी मूझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूं। एक बार वो मुझे पुकार ले मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूंगा। 

तुम्हें याद होगा जब पांडवों ने राजसूय यज्ञ कराया तो शिशुपाल का वध करने के लिए मैने अपनी ऊंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी ऊंगली कट गई

उस समय मेरी 16हजार 108 पत्नीयां वही थी। कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई मगर उस समय मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाडा और उसे मेरी ऊंगली पर बांध दिया। आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है। लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं नहीं जाऊंगा
अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरन्त ही दौडे चले गये

हमारे जीवन में भी कही संकट आते रहते हैं प्रभु-स्मरण उनके प्रति किया सत - कर्म हमारी सहायता के लिए भगवान को विवश कर देता है और तुरंत संकट टल जाता है !

सास और बहू की कहानी! 


'बहू कहां मर गई?
अंदर से आवाज- जिंदा हूं माँ जी।
तो फिर मेरी चाय क्यूं अभी तक नहीं आई, कब से पूजा करके बैठी हूं
ला रही हूं माँ जी,
बहू चाय के साथ, भजिया भी ले आयी, सास ने कहा तेल का खिलाकर क्या मरोगी?
बहू ने कहा- ठीक हैं माँ जी ले जाती हूं।
सास ने कहा- रहने दे अब बना दिया हैं तो खा लेती हूं।
 सास ने भजिया उठाई और कहा- कितनी गंदी भजिया बनाई हैं तुमने। 
बहू- माँ जी मुझे कपड़े धोने हैं मैं जाती हूं। 
बहू दरवाजे के पास छिपकर खड़ी हो गयी।
 सास भजिया पर टूट पड़ी और पूरी भजिया खत्म कर दी। 
बहू मुस्कुराई और काम पर लग गई।
दोपहर के खाने का वक्त हुआ। सास ने फिर आवाज लगाई- कुछ खाने को मिलेगा। 
बहू ने आवाज नहीं दी। 
सास फिर चिल्लाई- भूखे मारोगी क्या, बहू आयी सामने खिचड़ी रख दी। 
सास गुस्से से- ये क्या है, मुझे इसे नहीं खाना इसे। ले जाओ। 

बहू ने कहा- आपको डॉक्टर ने दिन में खिचड़ी खाने को कहा है, खाना तो पड़ेगा ही। 

सास मुंह बनाते हुए, हाँ तू मेरी माँ बन जा, बहू फिर मुस्कुराई और चली गई।

आज इनके घर पूजा थी

, बहू सुबह 4 बजे से उठ गयी। पहले स्नान किया, फिर फूल लाई। माला बनाई। रसोई साफ की। पकवान और भोज बनाया। सुबह के 10 बज गए। 

अब सास भी उठ चुकी थी। बहू अब पंडित जी के साथ भगवान के वस्त्र तैयार कर रही थी। 

आज ऑफिस की छुट्टी भी थीय़ उनके पति भी घर पर थे।

पूजा शुरू हुई, 

सास चिल्लाती बहू ये नहीं है, वो नही है।

 बहू दौड़ी-दौड़ी आती और सब करती। 

अब दोपहर के 3 बज गये थे, आरती की तैयारी चल रही थी, पंडित जी ने सबको आरती के लिए बुलाया और सबके हाथों में थाली दी, जैसे ही बहू ने थाली पकड़ी, थाली हाथों से गिर पड़ी। शायद भोज बनाते हुए बहू के हाथों मे तेल लगा था, जिसे वो पोंछना भूल गयी थी।

सारे लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। कैसी बहू है, कुछ नहीं आता। एक काम भी ठीक से नहीं कर सकती। ना जाने कैसी बहू उठा लाए। एक आरती की थाली भी संभाल नहीं सकीय़

 उसके पति भी गुस्सा हो गए पर सास चुप रही। कुछ नहीं कहा। बस यही बोल के छोड़ दिया सीख रही है, सब सीख जाएगी धीरे-धीरे।

अब सबको खाना परोसा जाने लगा, बहू दौड़-दौड़ के खाना देती, फिर पानी लाती। करीब 70- 80 लोग हो गये थे, इधर दो नौकर और बहू अकेली फिर भी वहाँ सारा काम, बहुत ही अच्छे तरीके से करती।

अब उसकी सास और कुछ आसपड़ोस के लोग खाने पर बैठे, बहू ने खाना परोसना शुरू किया, सब को खाना दे दिया गया, 

जैसे ही पहला निवाला सास ने खाया- तुमने नमक ठीक नहीं डाला क्या। एक काम ठीक से नहीं करती। पता नहीं मेरे बाद कैसे ये घर संभालेगी।

 आस-पड़ोस वालों को तो जानते ही हो ना साहब। वो बस बहाना ढूंढते हैं नुक्स निकालने का। फिर वो सब शुरू हो गये, ऐसा खाना है, ऐसी बहू है, ये वो वगैरहा-वगैरहा। दिन का खाना हो चुका था, अब बहू बर्तन साफ करने नौकरों के साथ लग गई।

रात में जगराता का कार्यक्रम रखा गया था।

 बहू ने भी एक दो गीत गाने के लिए स्टेज पर चढ़ी।

 सास जोर से चिल्लाई- मेरी नाक मत कटा देना, गाना नहीं आता तो मत गा, वापस आ जा।

 बहू मुस्कुराई और गाने लगी। 

सबने उसके गाने की तारीफ की, पर सास मुंह फूलाते हुए बोली, इससे अच्छा तो मैं गाती थी जवानी में, तुझे तो कुछ भी नहीं आता। बहू मुस्कुराई और चली गई।

अब रात का खाना खिलाया जा रहा था।

 उसके पति के ऑफिस के दोस्त साइड में ही ड्रिंक करने लगे। उसका पति चिल्लाता थोड़ा बर्फ लाओ, तो सास चिल्लाती यहाँ दाल नहीं है, फिर चिल्लाता कोल्ड ड्रिंग नहीं है, पापड़ ले आओ।

 इधर-उधर आखिरी में उसके पति की शराब गिर पड़ी उसके एक दोस्त पर और बोलत टूट गई। 

पति गुस्से में दो झापड़ अपनी पत्नी को लगाते हुए कहता है- जाहिल कहीं की। देखकर नहीं कर सकती। तुझे इतना भी काम नहीं आता।

 सारे लोग देखने लगे। उसकी पत्नी रोते हुए कमरे की तरफ दौड़ी, फिर उसके दोस्तों ने कहा- क्या यार पूरा मूड खराब कर दिया, यहाँ नहीं बुलाया होता, हम कहीं और पार्टी कर लेते। कैसी अनपढ़-गंवार बीवी ला रखी है तूने। उसे तो मेहमानों की इज्जत और काम करना तक नहीं आता, तुमने तो हमारी बेईजती कर दी।

अब आस पड़ोस की औरतों को और बहाना मिल गया था। वो कहने लगीं, देखो क्या कर दिया तुम्हारी बहू ने। कोई काम कीं नही है। मैं तो कहती हूं अपने बेटे की दूसरी शादी करा दो, छुटकारा पाओ इस गंवार से। 

सास उठी और अपने बेटे के पास जाकर उसे थप्पड़ मारा और कहा- अरे नालायक, तुमने मेरी बहू को मारा, तेरी हिम्मत कैसे हुई। तेरी टाँग तोड़ दूंगी, उसके बेटे के दोस्त कुछ कहने ही वाले थे कि उसकी माँ ने घूरते हुए- कहा चुप बिल्कुल चुप। यहाँ दारू पीने आये हो, जबकि पता है आज पूजा है और तुम्हें पार्टी करनी है, कैसे संस्कार दिये हैं तुम्हारे, माता-पिता ने।

और किसने मेरी बहू को जाहिल बोला, जरा इधर आओ। चप्पल से मारूंगी अगर मेरी बहू को किसी ने शब्द भी कहा तो। अरे पापी, तूने उस लड़की को बस इसलिए मारा कि तेरी शराब टूट गयी, पापी वो बच्ची सुबह चार बजे से उठी है। घर का सारा काम कर रही है। ना सुबह से नाश्ता किया ना दिन का खाना खाया। फिर भी हंसते हुए सबकी बातें सुनते हुए, ताने सुनते हुए घर के काम में लगी रही। तेरे यार दोस्तो को वो अच्छी नहीं लगी। जूते से मारूंगी तेरे दोस्तों को जो कभी उन्होंने ऐसा कहा। 

उसके यार दोस्त चुपके से खिसक लिए। 

अब सास, बहू के कमरे मे गयी, और बहू का हाथ पकड़कर बाहर लाई। सबके सामने कहने लगी, किसने कहा था अपनी बहू को घर से निकाल के दूसरी बहू ले आना। जरा सामने आओ। 

कोई सामने नहीं आया। 

फिर सास ने कहा, तुम जानते भी क्या हो इस लड़की के बारें में। ये मेरी "माँ" भी है, बेटी भी।

माँ इसलिए मुझे गलत काम करने पर डाँटती हैं और बेटी इसलिए, कभी-कभी मेरी दिल की भावनाएं समझ जाती हैं। मेरी दिन-रात सेवा करती है। मेरे हजार ताने सुनती है पर एक शब्द भी गलत नहीं कहती। ना सामने ना पीठ पीछे,और तुम कहते हो, दूसरी बहू ले आऊं। 

याद है ना छुटकी की दादी,

अपनी बहू की करतूत, सास ने गुस्से से पड़ोस की महिला को कहा, अभी पिछले हफ्ते ही तुम्हें मियां-बीवी भूखे छोड़ घूमने चले गये थे। मेरी इसी बहू ने 7 दिनों तक तुम्हारे घर पर खाना-पानी यहाँ तक कि तुम्हारे पैर दबाने जाती थी और तुम इसे जाहिल बोलती हो। जाहिल तो तुम सब हो जो कोयले और हीरे में फर्क नही जानते। अगर आइंदा मेरी बहू के बारे में किसी ने एक लफ्ज भी बोला तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा क्यूंकि ये मेरी बहू नहीं, मेरी बेटी है।

बहू_सिसकियाँ लेते हुये फिर कमरें में चली गई। 

सास ने एक प्लेट उठायी और भोजन परोसा और बहू के कमरे में खुद ले गयी, सास को भोजन लाते देखा तो बहू ने कहा- अरे माँ जी आप क्या कर रही हों, मैं खुद ले लेती। सास ने प्यार से ताना मारते हुये कहा, डर मत इसमें जहर नही हैं, मार नहीं डालूंगी तुझे। तुझे नई सास चाहिए होगी, पर मुझे अभी भी तू ही मेरे घर की बहू चाहिए

बहू ने अपनी सास को रोते हुए गले से लगा लिया। 

सास भी रो दी पहली बार और कहा- चल खाना खा ले। फिर उसके आंसू पोंछते हुए बोली...... अरे तु मेरी बहु नही मेरी बेटी है......

कुछ रिश्ते बहुत मीठे होते हैं, बस बातें कड़वी होती है.....

बहु को प्यार देकर देखो...वो तुम्हारे परिवार के लिए अपने घर का आँगन छोडकर आती है।

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