Bhagwan shiv shankar (bholenath) aur mata parvati marriage story in Hindi.
।। भोलेनाथ के विवाह की सम्पूर्ण कथा ||
सब देवता अपने भाँति - भाँति के वाहन और विमान सजाने लगे , कल्याणप्रद मंगल शकुन होने लगे और अप्सराएँ गाने लगीं ॥ सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा | जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा ॥ कुंडल कंकन पहिरे ब्याला । तन बिभूति पट केहरि छाला ॥ *
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा । नयन तीनि उपबीत भुजंगा ॥
गरल कंठ उर नर सिर माला । असिव बेष सिवधाम कृपाला ॥
Bhagwan shiv shankar story in Hindi. (Biography of Lord Shiva).
शिवजी के गण शिवजी का श्रृंगार करने लगे । जटाओं का मुकुट बनाकर उस पर साँपों का मौर सजाया गया । शिवजी ने साँपों के ही कुंडल और कंकण पहने , शरीर पर विभूति रमायी और वस्त्र की जगह बाघम्बर लपेट लिया ॥
शिवजी के सुंदर मस्तक पर चन्द्रमा , सिर पर गंगाजी , तीन नेत्र , साँपों का जनेऊ , गले में विष और छाती पर नरमुण्डों की माला थी । इस प्रकार उनका वेष अशुभ होने पर भी वे कल्याण के धाम और कृपालु हैं । भोले नाथ का उबटन किया गया है । लेकिन हल्दी से नहीं , जले हुए मुर्दों की राख से । क्योंकि भोले नाथ को मुर्दों से भी प्यार है । एक बार भोले बाबा निकल रहे थे किसी की शव यात्रा जा रही थी । लोग कहते हुए जा रहे थे राम नाम सत्य है । भोले नाथ ने सुना की ये सब राम का नाम लेते हुए जा रहे हैं । ये सभी मेरी पार्टी के लोग हैं । क्योंकि मुझे राम नाम से प्यार है । लेकिन जैसे ही लोगों ने उस मुर्दे को जलाया तो लोगों ने राम नाम सत्य कहना बंद कर दिया । और सभी वहां से चले गए । भोले नाथ ने कहा अरे ! इन सबने राम नाम सत्य कहना बंद कर दिया इनसे अच्छा तो ये मुर्दा है जिसने राम नाम सुनकर यहाँ राम नाम की समाधी लगा दी । मुझे तो इनकी चिता से और इनकी भस्म से ही प्रेम है । इसलिए मैं इनकी भस्म को अपने शरीर पर धारण करूँगा ।
Lord Shiva and mata parvati story in Hindi.
एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू सुशोभित है । शिवजी बैल पर चढ़कर चले । बाजे बज रहे हैं । शिवजी को देखकर देवांगनाएँ मुस्कुरा रही हैं ( और कहती हैं कि ) इस वर के योग्य दुलहिन संसार में नहीं मिलेगी ॥
विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओं के समूह अपने - अपने वाहनों ( सवारियों ) पर चढ़कर बारात में चले । तब विष्णु भगवान ने सब दिक्पालों को बुलाकर हँसकर ऐसा कहा- सब लोग अपने - अपने दल समेत अलग - अलग होकर चलो ॥ हे भाई ! हम लोगों की यह बारात वर के योग्य नहीं है । क्या पराए नगर में जाकर हँसी कराओगे ?
विष्णु भगवान की बात सुनकर देवता मुस्कुराए और वे अपनी - अपनी सेना सहित अलग हो गए ॥ महादेवजी ( यह देखकर मन - ही - मन मुस्कुराते हैं कि विष्णु भगवान के व्यंग्य - वचन ( दिल्लगी ) नहीं छूटते ! अपने प्यारे ( विष्णु भगवान ) के इन अति प्रिय वचनों को सुनकर शिवजी ने भी भृंगी को भेजकर अपने सब गणों को बुलवा लिया ॥
शिवजी की आज्ञा सुनते ही सब चले आए और उन्होंने स्वामी के चरण कमलों में सिर नवाया । तरह - तरह की सवारियों और तरह - तरह के वेष वाले अपने समाज को देखकर शिवजी हँसे । शिवजी की बारात कैसी है जरा देखिये- कोई बिना मुख का है , किसी के बहुत से मुख हैं , कोई बिना हाथ - पैर का है तो किसी के कई हाथ - पैर हैं । किसी के बहुत आँखें हैं तो किसी के एक भी आँख नहीं है । कोई बहुत मोटा - ताजा है , तो कोई बहुत ही दुबला पतला है । कोई बहुत दुबला , कोई बहुत मोटा , कोई पवित्र और कोई अपवित्र वेष धारण किए हुए है । भयंकर गहने पहने हाथ में कपाल लिए हैं और सब के सब शरीर में ताजा खून लपेटे हुए हैं । गधे , कुत्ते , सूअर और सियार के से उनके मुख हैं । गणों के अनगिनत वेषों को कौन गिने ? बहुत प्रकार के प्रेत , पिशाच और योगिनियों की जमाते हैं । उनका वर्णन करते नहीं बनता ।
Lord Shiva sankar Awatars in Hindi.
भूत - प्रेत नाचते और गाते हैं , वे सब बड़े मौजी हैं । देखने में बहुत ही बेढंगे जान पड़ते हैं और बड़े ही विचित्र ढंग से बोलते हैं ॥
जैसा दूल्हा है , अब वैसी ही बारात बन गई है । आप सोचे रहे होंगे की भोले नाथ इन बहुत प्रेत को लेकर क्यों जा रह हैं इसके पीछे भी एक कथा है । जिस समय भगवान राम का विवाह हो रहा था उस समय सभी विवाह में पधारे थे । सभी देवता , सभी गन्धर्व इत्यादि ।
भोले नाथ भी विवाह में दर्शन करने के लिए जा रहे थे । तभी भोले बाबा ने देखा की कुछ लोग मार्ग में बैठकर रो रहे हैं । शिव कृपा के धाम हैं और करुणा करने वाले हैं । भोले नाथ ने उनसे पूछा की तुम क्यों रो रहे हो ?
आज तो मेरे राम का विवाह हो रहा है । आप रो रहे हो । रामजी के विवाह में नहीं चल रहे ? वो बोले- हमे कौन लेकर जायेगा ? हम अमंगल हैं , हम अपशगुन हैं । दुनिया के घर में कोई भी शुभ कार्य हो तो हमे कोई नहीं बुलाता है । भोले नाथा का ह्रदय करुणा से भर गया- तुरंत बोल पड़े की कोई बात नहीं राम विवाह में मत जाना तुम , पर मेरे विवाह में तुम्हे पूरी छूट होगी । तुम सारे अमंगल - अपशगुन आ जाना । इसलिए आज सभी मौज मस्ती से शिव विवाह में झूमते हुए जा रहे हैं ।
बारात को नगर के निकट आई सुनकर नगर में चहल - पहल मच गई , जिससे उसकी शोभा बढ़ गई । अगवानी करने वाले लोग बनाव - श्रृंगार करके तथा नाना प्रकार की सवारियों को सजाकर आदर सहित बारात को लेने चले ॥
देवताओं के समाज को देखकर सब मन में प्रसन्न हुए और विष्णु भगवान को देखकर तो बहुत ही सुखी हुए , किन्तु जब शिवजी के दल को देखने लगे तब तो उनके सब वाहन ( सवारियों के हाथी , घोड़े , रथ के बैल आदि ) डरकर भाग चले ॥
क्या कहें , कोई बात कही नहीं जाती । यह बारात है या यमराज की सेना ? दूल्हा पागल है और बैल पर सवार है । साँप , कपाल और राख ही उसके गहने हैं । दूल्हे के शरीर पर राख लगी है , साँप और कपाल के गहने हैं , वह नंगा , जटाधारी और भयंकर है । उसके साथ भयानक मुखवाले भूत , प्रेत , पिशाच , योगिनियाँ और राक्षस हैं , जो बारात को देखकर जीता बचेगा , सचमुच उसके बड़े ही पुण्य हैं और वही पार्वती का विवाह देखेगा । लड़कों ने घर - घर यही बात कही । " } }
Bhagwan shiv shankar rudrabhishek vidhi In hindi.
शिव का चंद्रशेखर रूप , पार्वती की माता मैना के भीतर अहंकार था । आज भोले नाथ इस अहंकार को नष्ट करना चाहते हैं । इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु और ब्रह्माजी से कहा- आप दोनों मेरी आज्ञा से अलग - अलग गिरिराज के द्वार पर पहुँचिये । शिवजी की आज्ञा मानकर भगवान विष्णु सबसे पहले हिमवान के द्वार पर पधारे हैं ।
मैना ( पार्वतीजी की माता ) ने शुभ आरती सजाई और उनके साथ की स्त्रियाँ उत्तम मंगलगीत गाने लगीं ॥ सुंदर हाथों में सोने का थाल शोभित है , इस प्रकार मैना हर्ष के साथ शिवजी का परछन करने चलीं । जब मैना ने विष्णु के अलोकिक रूप को देखा तो प्रसन्न होकर नारद जी से पूछा है- नारद ! क्या ये ही मेरी शिवा के शिव हैं ? नारदजी बोले- नहीं , ये तो भगवान हैं श्री हरि हैं ।
पार्वती के पति तो और भी अलोकिक हैं । उनकी शोभा का वर्णन नहीं हो सकता है । इस प्रकार एक एक देवता आ रहे हैं , मैना उनका परिचय पूछती हैं और नारद जी उनको शिव का सेवक बताते हैं । . फिर उसी समय भगवान शिव अपने शिवगणों के साथ पधारे हैं । सभी विचित्र वेश - भूषा धारण किये हुए हैं । कुछ के मुख ही नहीं है और कुछ के मुख ही मुख हैं । उनके बीच में भगवान शिव अपने नाग के साथ पधारे हैं ।
अब भोले बाबा से द्वार पर शगुन माँगा गया है । भोले बाबा बोले की भैया , शगुन क्या होता है ? किसी ने कहा की आप अपनी कोई प्रिय वास्तु को दान में दीजिये । भोले बाबा ने अपने गले से सर्प उतारा और उस स्त्री के हाथ में रख दिया जो शगुन मांग रही थी । वहीं मूर्छित हो गई ।
इसके बाद जब महादेवजी को भयानक वेष में देखा तब तो स्त्रियों के मन में बड़ा भारी भय उत्पन्न हो गया । बहुत ही डर के मारे भागकर वे घर में घुस गईं और शिवजी जहाँ जनवासा था , वहाँ चले गए । कुछ डर के मारे कन्या पक्ष ( मैना जी ) वाले मूर्छित हो गए हैं ।
जब मैना जी को होश आया है तो रोते हुए कहा - चाहे कुछ भी हो जाये मैं इस भेष में अपनी बेटी का विवाह शिव से नहीं कर सकती हूँ । उन्होंने पार्वती से कहा- मैं तुम्हें लेकर पहाड़ से गिर पहुँगी , आग में जल जाऊँगी या समुद्र में कूद पहूँगी ।
चाहे घर उजड़ जाए और संसार भर में अपकीर्ति फैल जाए , पर जीते जी मैं इस बावले वर से तुम्हारा विवाह न करूँगी । नारद जी को भी बहुत सुनाया है । मैंने नारद का क्या बिगाड़ा था , जिन्होंने मेरा बसता हुआ घर उजाड़ दिया और जिन्होंने पार्वती को ऐसा उपदेश दिया कि जिससे उसने बावले वर के लिए तप किया ॥ सचमुच उनके न किसी का मोह है , न माया , न उनके धन है , न घर है और न स्त्री ही है , वे सबसे उदासीन हैं । इसी से वे दूसरे का घर उजाड़ने वाले हैं । उन्हें न किसी की लाज है , न डर है । भला , बाँझ स्त्री प्रसव की पीड़ा को क्या जाने ॥
Mahamirtunjay mantra kaise bna Hindi mein.
ये सब सुनकर पार्वती अपनी माँ से बोली- हे माता ! कलंक मत लो , रोना छोड़ो , यह अवसर विषाद करने का नहीं है । मेरे भाग्य में जो दुःख - सुख लिखा है , उसे मैं जहाँ जाऊँगी , वहीं पाऊँगी ! पार्वतीजी के ऐसे विनय भरे कोमल वचन सुनकर सारी स्त्रियाँ सोच करने लगीं और भाँति - भाँति से विधाता को दोष देकर आँखों से आँसू बहाने लगीं । फिर ऐसा कहकर पार्वती शिव के पास गई हैं । और उन्होंने निवेदन किया है हे भोले नाथ ! मुझे सभी रूप और सभी वेश में स्वीकार हो ।
लेकिन प्रत्येक माता पिता की इच्छा होती है की उनका दामाद सुंदर हो । तभी वहां विष्णु जी आ जाते हैं । और कहते है- पार्वती जी ! आप चिंता मत कीजिये । आज जो भोले बाबा का रूप बनेगा उसे देखकर सभी दांग रह जायेंगे ।
आप ये ज़िम्मेदारी मुझ पर छोड़िये । अब भगवान विष्णु ने भगवान शिव का सुंदर श्रृंगार किया है और सुंदर वस्त्र पहनाये हैं । करोड़ों कामदेव को लज्जित करने वाला रूप बनाया है भोले बाबा का | भोले बाबा के इस रूप को आज भगवान विष्णु ने चंद्रशेखर नाम दिया है । बोलिए चंद्रशेखर शिव जी की जय !!
इस समाचार को सुनते ही हिमाचल उसी समय नारदजी और सप्त ऋषियों को साथ लेकर अपने घर गए | तब नारदजी ने पूर्वजन्म की कथा सुनाकर सबको समझाया ( और कहा कि हे मैना ! तुम मेरी सच्ची बात सुनो , तुम्हारी यह लड़की साक्षात जगज्जनी भवानी है । पहले ये दक्ष के घर जाकर जन्मी थीं , तब इनका सती नाम था , बहुत सुंदर शरीर पाया था । वहाँ भी सती शंकरजी से ही ब्याही गई थीं ।
एक बार मोहवश इन्होने शंकर जी का कहना नहीं माना और भगवान राम की परीक्षा ली । भगवान शिव ने इनका त्याग कर दिया और इन्होने अपनी देह का त्याग कर दिया ।
फिर इन्होने आपके घर पार्वती के रूप में जन्म लिया है । ऐसा जानकर संदेह छोड़ दो , पार्वतीजी तो सदा ही शिवजी की प्रिया ( अर्द्धांगिनी ) हैं ।
और आप ये भी चिंता ना करो की भोले बाबा का रूप ऐसा हैऐसा जानकर संदेह छोड़ दो , पार्वतीजी तो सदा ही शिवजी की प्रिया ( अर्द्धांगिनी ) हैं । आप देखना भोले बाबा के नए रूप को । जिसे भगवान हरि ने स्वयं अपने हाथो से सजाया है ।
तब नारद के वचन सुनकर सबका विषाद मिट गया और क्षणभर में यह समाचार सारे नगर में घर - घर फैल गया ॥
तब मैना और हिमवान आनंद में मग्न हो गए । और जैसे ही भगवान शिव के दिव्य चंद्रशेखर रूप का दर्शन किया है । मैंने मैया तो देखते ही रह गई । उन्होंने अपने दामाद की शोभा देखि और आरती उतारकर घर में चली गई । शिव पार्वती विवाह ,, नगर में मंगल गीत गाए जाने लगे और सबने भाँति - भाँति के सुवर्ण के कलश सजाए ।
जिस घर में स्वयं माता भवानी रहती हों , वहाँ की ज्योनार ( भोजन सामग्री ) का वर्णन कैसे किया जा सकता है ? हिमाचल ने आदरपूर्वक सब बारातियों , विष्णु , ब्रह्मा और सब जाति के देवताओं को बुलवाया ॥ भोजन ( करने वालों ) की बहुत सी पंगतें बैठीं । चतुर रसोइए परोसने लगे । स्त्रियों की मंडलियाँ देवताओं को भोजन करते जानकर कोमल वाणी से गालियाँ देने लगीं ॥
और व्यंग्य भरे वचन सुनाने लगीं । देवगण विनोद सुनकर बहुत सुख अनुभव करते हैं , इसलिए भोजन करने में बड़ी देर लगा रहे हैं । भोजन कर चुकने पर ) सबके हाथ - मुँह धुलवाकर पान दिए गए । फिर सब लोग , जो जहाँ ठहरे थे , वहाँ चले गए ।
फिर मुनियों ने लौटकर हिमवान् को लगन ( लग्न पत्रिका ) सुनाई और विवाह का समय देखकर देवताओं को बुला भेजा ॥
वेदिका पर एक अत्यन्त सुंदर दिव्य सिंहासन था । ब्राह्मणों को सिर नवाकर और हृदय में अपने स्वामी श्री रघुनाथजी का स्मरण करके शिवजी उस सिंहासन पर बैठ गए । फिर मुनीश्वरों ने पार्वतीजी को बुलाया । सखियाँ श्रृंगार करके उन्हें ले आईं ।
पार्वतीजी को जगदम्बा और शिवजी की पत्नी समझकर देवताओं ने मन ही मन प्रणाम किया । भवानीजी सुंदरता की सीमा हैं । करोड़ों मुखों से भी उनकी शोभा नहीं कही जा सकती ॥ सुंदरता और शोभा की खान माता भवानी मंडप के बीच में , , जहाँ शिवजी थे , वहाँ गईं । वे संकोच के मारे पति ( शिवजी ) के चरणकमलों को देख नहीं सकतीं , परन्तु उनका मन रूपी भौंरा तो वहीं ( रसपान कर रहा था । मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वतीजी ने गणेशजी का पूजन किया ।
मन में देवताओं को अनादि समझकर कोई इस बात को सुनकर शंका न करे ( कि गणेशजी तो शिव - पार्वती की संतान हैं , अभी विवाह से पूर्व ही वे कहाँ से आ गए ? ) पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर तथा कन्या का हाथ पकड़कर उन्हें भवानी ( शिवपत्नी ) जानकर शिवजी को समर्पण किया ॥ जब महेश्वर ( शिवजी ) ने पार्वती का पाणिग्रहण किया , तब ( इन्द्रादि ) सब देवता हृदय में बड़े ही हर्षित हुए ।
श्रेष्ठ मुनिगण वेदमंत्रों का उच्चारण करने लगे और देवगण शिवजी का जय जयकार करने लगे । अनेकों प्रकार के बाजे बजने लगे । आकाश से नाना प्रकार के फूलों की वर्षा हुई । शिव - पार्वती का विवाह हो गया । सारे ब्राह्माण्ड में आनंद भर गया ॥
बहुत प्रकार का दहेज देकर , फिर हाथ जोड़कर हिमाचल ने कहा - हे शंकर ! आप पूर्णकाम हैं , मैं आपको क्या दे सकता हूँ ? ( इतना कहकर ) वे शिवजी के चरणकमल पकड़कर रह गए ।
तब कृपा के सागर शिवजी ने अपने ससुर का सभी प्रकार से समाधान किया । फिर प्रेम से परिपूर्ण हृदय मैनाजी ने शिवजी के चरण कमल पकड़े ( और कहा- नाथ उमा मम प्रान सम गृहकिंकरी करेहु । छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु ॥ हे नाथ ! यह उमा मुझे मेरे प्राणों के समान ( प्यारी ) है । आप इसे अपने घर की टहलनी बनाइएगा और इसके सब अपराधों को क्षमा करते रहिएगा । अब प्रसन्न होकर मुझे यही वर दीजिए ॥
शिवजी ने बहुत तरह से अपनी सास को समझाया । फिर माता ने पार्वती को बुला लिया और गोद में बिठाकर यह सुंदर सीख दी - - हे पार्वती ! तू सदाशिवजी के चरणों की पूजा करना , नारियों का यही धर्म है । उनके लिए पति ही देवता है और कोई देवता नहीं है । इस प्रकार की बातें कहते - कहते उनकी आँखों में आँसू भर आए और उन्होंने कन्या को छाती से चिपटा लिया ।
पार्वतीजी माता से फिर मिलकर चलीं , सब किसी ने उन्हें योग्य आशीर्वाद दिए । हिमवान् अत्यन्त प्रेम से शिवजी को पहुँचाने के लिए साथ चले । वृषकेतु ( शिवजी ) ने बहुत तरह से उन्हें संतोष कराकर विदा किया । पर्वतराज हिमाचल तुरंत घर आए और उन्होंने सब पर्वतों और सरोवरों को बुलाया । हिमवान ने आदर , दान , विनय और बहुत सम्मानपूर्वक सबकी विदाई की ॥
जब शिवजी कैलास पर्वत पर पहुँचे , तब सब देवता अपने - अपने लोकों को चले गए । तुलसीदासजी कहते हैं कि ) पार्वतीजी और शिवजी जगत के माता - पिता हैं , इसलिए मैं उनके श्रृंगार का वर्णन नहीं करता ॥
शिव - पार्वती विविध प्रकार के भोग - विलास करते हुए अपने गणों सहित कैलास पर रहने लगे । वे नित्य नए विहार करते थे । इस प्रकार बहुत समय बीत गया । तब छ : मुखवाले पुत्र ( स्वामिकार्तिक ) का जन्म हुआ , जिन्होंने ( बड़े होने पर ) युद्ध में तारकासुर को मारा ।
वेद , शास्त्र और पुराणों में स्वामिकार्तिक के जन्म की कथा प्रसिद्ध है और सारा जगत उसे जानता है ॥ तुलसीदास जी कहते हैं शिव - पार्वती के विवाह की इस कथा को जो स्त्री - पुरुष कहेंगे और गाएँगे , वे कल्याण के कार्यों और विवाहादि मंगलों में सदा सुख पाएँगे ।
यह उमा संभु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं । कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं ॥
भगवान शिव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :-
1. भगवान शिव का कोई माता-पिता नही है ! उन्हें अनादि माना गया है ! मतलब, जो हमेशा से था ! जिसके जन्म की कोई तिथि नही !
2. कथक, भरत नाट्यम करते वक्त भगवान शिव की जो मूर्ति रखी जाती है, उसे नटराज कहते है !
3. किसी भी देवी-देवता की टूटी हुई मूर्ति की पूजा नही होती ! लेकिन शिवलिंग चाहे कितना भी टूट जाए फिर भी पूजा जाता है !
4. शंकर भगवान की एक बहन भी थी अमावरी ! जिसे माता पार्वती की जिद्द पर खुद महादेव ने अपनी माया से बनाया था !
5. भगवान शिव और माता पार्वती का १ ही पुत्र था ! जिसका नाम था ! कार्तिकेय..
(गणेश भगवान तो मां पार्वती ने अपने उबटन शरीर पर लगे लेप) से बनाए थे !
6. भगवान शिव ने गणेश जी का सिर इसलिए काटा था ! क्यो किं गणेश ने शिव को पार्वती से मिलने नही दिया
था ! उनकी मां पार्वती ने ऐसा करने के लिए बोला था !
7. भोले बाबा ने तांडव करने के बाद सनकादि के लिए चौदह बार डमरू बजाया था ! जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था !
8. शंकर भगवान पर कभी भी केतकी का फुल नही चढ़ाया जाता ! क्यों कि यह ब्रह्मा जी के झूठ का गवाह बना था !
9. शिवलिंग पर बेलपत्र तो लगभग सभी चढ़ाते है ! लेकिन इसके लिए भी एक ख़ास सावधानी बरतनी पड़ती है, कि बिना जल के, बेलपत्र नही चढ़ाया जा सकता !
10. शंकर भगवान और शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नही चढ़ाया जाता ! क्यो किं शिव जी ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया था !* आपको बता दें, शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था !
11. भगवान शिव के गले में जो सांप लिपटा रहता है ! उसका नाम है वासुकि है ! यह शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा था ! भगवान शिव ने खुश होकर इसे गले में डालने का वरदान दिया था !
12. चंद्रमा को भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान मिला हुआ है !
13. नंदी, जो शंकर भगवान का वाहन और उसके सभी शिव-गणों में सबसे ऊपर भी है ! वह असल में शिलाद ऋषि को वरदान में प्राप्त पुत्र था !
जो बाद में कठोर तप के कारण नंदी बना था !
14. गंगा भगवान शिव के सिर से क्यों बहती है ? देवी गंगा को जब धरती पर उतारने की सोची तो एक समस्या आई कि इनके वेग से तो भारी विनाश हो जाएगा ! तब शंकर भगवान को मनाया गया कि, पहले गंगा को अपनी ज़टाओं में बाँध लें, फिर अलग-अलग दिशाओं से धीरें-धीरें उन्हें धरती पर उतारें !
15. शंकर भगवान का शरीर नीला इसलिए पड़ा क्यों कि उन्होने हलाहल जहर पी लिया था ! दरअसल, समुंद्र मंथन के समय १४ चीजें निकली थी !
16. १३ चीजें तो असुरों और देवताओं ने आधी-आधी बाँट ली लेकिन हलाहल नाम का विष लेने को कोई तैयार नही था ! ये विष बहुत ही घातक था ! इसकी एक बूँद भी धरती पर बड़ी तबाही मचा सकती थी ! तब भगवान शिव ने इस विष को पीया था ! यही से उनका नाम पड़ा नीलकंठ !
17. भगवान शिव को संहार का देवता माना जाता है ! इसलिए कहते है, तीसरी आँख बंद ही रहे प्रभु की...
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